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दो दुनियाओं में फंसे हर किसी की नकाबपोश कहानी part 2
बेनकाब पार्ट-1 ने हजारों लोगों का जीवनपरिवर्तन किया, यहाँ तक कि नास्तिक युवक-युवतियों ने भी धर्म के रास्ते को चुना। पार्ट-2 ज्यादा खुबसुरत है और ज्यादा असर दार है, अपेक्षा की तरह आपको भी पढने के बाद दीक्षा लेने का मन हो, तो मुझे जरूर कहना... मार्गदर्शन की जरूरत हो, तो जरूर लाभ देना । किताब में ही इतना सब कुछ भरा हुआ है कि मुझे और कुछ कहने की जरूरत ही नहीं है... हाँ! मेरे गुरुदेव ने एक बार मेरे उत्तम कार्य के सामने हार मानकर अपनी खुशी व्यक्त करने कहाँ था और एक वाक्य लिखा था 'सर्वत्र विजयं बाछेत् शिष्यात्पुत्रात्' पराजयंट. हर जगह विजय की कामना करो, पर शिष्य और पुत्र से हार की इच्छा करो। मैंने संस्कृत टीका लिखी थी और वे खुश हुए थे और मुझ से कहाँ था कि, मैं बहुत खुश हूँ कि मैं तुमसे हार गया- आज उन्हीं शब्दों को मैं अपने शिष्य शीलगुण वि. के लिए वापरता हूँ कि, मैंने लगभग 300 आसपास किताबें लिखी है, लेकिन मैं तुम्हारी इस बेनकाब पुस्तक के सामने हार मानता हूँ और यह भी बड़े आनंद के साथ... प्रभु से यही प्रार्थना है कि मेरा शिष्य मुझे और बुरी तरह हराऍं युगप्रधानाचार्यसम पूज्यपाद गुरुदेवश्री चन्द्रशेखर म.सा. का शिष्य मुनि गुणहंस वि. सोमवार, दि. 12-1-2022 विजयनगरम (आंध्रप्रदेश) 145